औरत! ( Aurat ) घर को घर देखो बनाती है औरत, रंग – बिरंगे फूल खिलाती है औरत। न जाने कितने खेले गोंद में देवता, उम्रभर औरों के लिए जीती है औरत। लाज- हया धोकर कुछ बैठे हैं देखो, कभी-कभी कीमत चुकाती है औरत। जिद पर आए तो जीत लेती है मैदान, झाँसी की … Continue reading औरत | Poem in Hindi on Aurat
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