सिन्दूर पर कविता | Poem in Hindi on Sindoor

सिन्दूर पर कविता  ( Sindoor par kavita )    सिन्दूर के नाम पर क्यों? नारी बंध सी जाती है, अबला बन जाती है तड़प तड़प कर जिंदा ही, मर सी जाती है। सिन्दूर के लज्जा में सम्मान श्रद्धा में पति को भगवान ही समझती, फिर भी, न जाने क्यों! बार बार मन में प्रश्न उठता … Continue reading सिन्दूर पर कविता | Poem in Hindi on Sindoor