कुर्सी पर हक | Poem kursi par haq

कुर्सी पर हक ( Kursi par haq )   दिल जिगर को तोल रहे, खुद को बाजीगर कहते। जनभावों संग खेल रहे हैं, मन में खोट पार्ले रहते।   वादों प्रलोभन में उलझा, खुद उल्लू सीधा करते। भ्रमित रहती जनता सारी, वो अपनी जेबें भरते।   कलाकार कलाबाजीयां, जादूगरी जिनको आती। नतमस्तक सारी दुनिया, उनकी … Continue reading कुर्सी पर हक | Poem kursi par haq