मौसम-ए-गुल | Poem mausam-e-gul
मौसम-ए-गुल! ( Mausam-e-gul ) ख्ब्वाब अपना पांव पसारने लगे हैं, परिन्दे घोंसले को लौटने लगे हैं। दिल के दस्तावेज पे लिखा उसने नाम, आजकल दिन उसके इतराने लगे हैं। बुलबुल भी खुश है और चमन भी खुश, मौसम-ए-गुल देखो बिहसने लगे हैं। खिजाँ के दिन कब टिके हैं जहां में, मेंहदी वाले हाथ महकने … Continue reading मौसम-ए-गुल | Poem mausam-e-gul
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