रिवाज़ | Poem Riwaz

रिवाज़ ( Riwaz ) जब चाहा अपना बना लिया, जब चाहा दामन छुड़ा लिया, रिश्तों को पामाल करने का, ये रिवाज़ किसने बना दिया, रोज़ ही निकलने लगे एहसासों के जनाजे, क़त्लगारी का, यह कैसा चलन बना दिया, किसी की ख़ुशियाँ न देखी जाती किसी से, हर कोई किसी ने दो गज़ कोना बना लिया, … Continue reading रिवाज़ | Poem Riwaz