रिवाज़
रिवाज़

रिवाज़

( Riwaz )

जब चाहा अपना बना लिया,
जब चाहा दामन छुड़ा लिया,
रिश्तों को पामाल करने का,
ये रिवाज़ किसने बना दिया,

रोज़ ही निकलने लगे एहसासों के जनाजे,
क़त्लगारी का, यह कैसा चलन बना दिया,
किसी की ख़ुशियाँ न देखी जाती किसी से,
हर कोई किसी ने दो गज़ कोना बना लिया,

पुर-ख़ुलूशित से भरे जज़्बे
मौत की सी नींद जा सोई है,
चुगली चापलूसी ने सभी के
जमीर पे कब्जा जमा लिया!

Aash Hamd

आश हम्द

पटना ( बिहार )

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निर्झर | Kavita Nirjhar

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