टुकड़ों में बटी ज़िंदगी | Poem tukadon mei bati zindagi
टुकड़ों में बटी ज़िंदगी ( Tukadon mein bati zindagi ) टुकड़ों में बटी ज़िंदगी जोड़ूँ कैसे सुलझाती इस ज़िंदगी को उलझ जाती हूँ कभी मैं सुलझाऊँ ‘गर खुद को तो उलझ कर रह जाये ज़िंदगी टुकड़ों का कोना तुड़ा मुड़ा जुड़े न इक दूजे से मसला – ए – ज़ीस्त हल करते करते खुद … Continue reading टुकड़ों में बटी ज़िंदगी | Poem tukadon mei bati zindagi
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