Poem tukadon mei bati zindagi
Poem tukadon mei bati zindagi

टुकड़ों में बटी ज़िंदगी

( Tukadon mein bati zindagi )

 

टुकड़ों में बटी
ज़िंदगी
जोड़ूँ कैसे

सुलझाती इस
ज़िंदगी को
उलझ जाती हूँ
कभी मैं

सुलझाऊँ ‘गर
खुद को तो
उलझ कर रह जाये
ज़िंदगी

टुकड़ों का कोना
तुड़ा मुड़ा
जुड़े न
इक दूजे से

मसला – ए – ज़ीस्त
हल करते करते
खुद हो गई
मसला

टुकड़ों में थी
ज़िंदगी अब
समेटूँ कैसे जब
टुकड़ों में बंटी हूँ
मैं.

?

Suneet Sood Grover

लेखिका :- Suneet Sood Grover

अमृतसर ( पंजाब )

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