रात का नशा था | Raat ka Nasha Shayari

रात का नशा था ( Raat ka nasha tha )   रात का नशा था खुमारी कुछ तन्हाई की सर चढ़ी यूँ पैमाना कोई मय सा आलम यह कैसा मैं मैं न रही तू हो गई कब रात से सुबह हो गई आलम यह कैसा सामने था जो अँधेरा वो हो गया सवेरा कुछ तेरा … Continue reading रात का नशा था | Raat ka Nasha Shayari