
रात का नशा था
( Raat ka nasha tha )
रात का नशा था
खुमारी कुछ तन्हाई की
सर चढ़ी यूँ
पैमाना कोई मय सा
आलम यह कैसा
मैं मैं न रही
तू हो गई
कब रात से
सुबह हो गई
आलम यह कैसा
सामने था जो
अँधेरा
वो हो गया
सवेरा
कुछ तेरा
कुछ मेरा
रात का नशा था
या
खुमारी तन्हाई की..
लेखिका :- Suneet Sood Grover
अमृतसर ( पंजाब )