रहते हैं ज़मीरों को | Ghazal Rahte Hain
रहते हैं ज़मीरों को ( Rahte Hain Zameeron ko ) रहते हैं ज़मीरों को यहाँ बेचने वाले दुश्मन ने यही सोच के कुछ जाल हैं डाले बेटे ही जहाँ माँ का गला नोच रहे हों उस घर की मुसीबत को तो भगवान ही टाले दुश्मन है इसी बात पे हैरान अभी तक हम से कभी … Continue reading रहते हैं ज़मीरों को | Ghazal Rahte Hain
Copy and paste this URL into your WordPress site to embed
Copy and paste this code into your site to embed