रोज हंगामा होता ख़ूब | Ghazal

रोज हंगामा होता ख़ूब ( Roj hungama hota khoob )     रोज  हंगामा  होता  ख़ूब ग़ज़लों पर है चर्चा ख़ूब   कैसे मिलनें जाऊं उससे गलियों में है पहरा ख़ूब   कल तक तो वो अपना था गैर हुआ वो चेहरा ख़ूब   कितना रौब दिखाए वो घर में आया पैसा ख़ूब   कोई … Continue reading रोज हंगामा होता ख़ूब | Ghazal