Roj hungama hota khoob
Roj hungama hota khoob

रोज हंगामा होता ख़ूब

( Roj hungama hota khoob )

 

 

रोज  हंगामा  होता  ख़ूब

ग़ज़लों पर है चर्चा ख़ूब

 

कैसे मिलनें जाऊं उससे
गलियों में है पहरा ख़ूब

 

कल तक तो वो अपना था
गैर हुआ वो चेहरा ख़ूब

 

कितना रौब दिखाए वो
घर में आया पैसा ख़ूब

 

कोई जीवन में रब भेज
जीवन में हूँ तन्हा ख़ूब

 

देते खेत नहीं मेरा वो
अपनों से है झगड़ा ख़ूब

 

फ़ूल नहीं लें तू उल्फ़त का
उल्फ़त में है धोखा ख़ूब

 

रोज़ किसी की यादों में ही
आज़म का दिल तड़फा ख़ूब

❣️

शायर: आज़म नैय्यर

(सहारनपुर )

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