सभी बशर यहाँ के यार बे-ज़बाँ निकले

सभी बशर यहाँ के यार बे-ज़बाँ निकले सितम ही सहते रहे वो तो ला-मकाँ निकलेसभी बशर यहाँ के यार बे-ज़बाँ निकले न कल ही निकले न वो आज जान-ए-जाँ निकलेकि चाँद ईद के हैं रोज़ भी कहाँ निकले तबाही फैली कुदूरत की हर तरफ़ ही यहाँकहाँ कोई भी मुहब्बत का आशियाँ निकले रहे-वफ़ा में न … Continue reading सभी बशर यहाँ के यार बे-ज़बाँ निकले