Hindi poem on child | समझदार हुए बच्चे:हम कच्चे के कच्चे

समझदार हुए बच्चे:हम कच्चे के कच्चे ( Samajhdar Hue Bache : Hum kache ke Kache )   वह खेल रहा था खेले ही जा रहा था सांप हिरण शेर हाथी और जिब्रा से बिना डरे बिना थके बिना रूके कभी उनके लिए घर बनाता तो कभी छत पर चढ़ाता कभी झूला झुलाता कभी गिराता उठाता … Continue reading Hindi poem on child | समझदार हुए बच्चे:हम कच्चे के कच्चे