समझते ही नहीं | Samajhte hi Nahi

समझते ही नहीं वो मुहब्बत को मेरी कुछ क्योंकर समझते ही नहींप्यार के वादों पे अब तो वो उछलते ही नहीं एक हम हैं जो उन्हें देखे सँभलते ही नहींऔर वो हैं की हमें देखे पिघलते ही नहीं मिल गये जो राह में हमको कभी चलते हुएइस तरह मुँह फेरते जैसे कि मिलते ही नहीं … Continue reading समझते ही नहीं | Samajhte hi Nahi