स्वर्णिम साँझ सवेरे | Sanjh Savere

स्वर्णिम साँझ सवेरे ( Swarnim sanjh savere )    टकराती हैं शंकित ध्वनियाँ , ह्दय द्वार से मेरे । अभिशापित से भटक रहे हैं , स्वर्णिम साँझ-सवेरे ।। विकल हुईं सब जोत-सिद्धियाँ, किसके आवाहन में एक अनोखा जादू छलता , मन को सम्मोहन में ठहर गया है ह्दय-द्वार तक , कोई आते -आते चँहक उठी … Continue reading स्वर्णिम साँझ सवेरे | Sanjh Savere