शेखर की कविताएं | Shekhar Hindi Poetry

जीने का गुर क्यूं खोता है विश्वास तुम्हारा जब रचा है प्रभु ने किरदार तेरा क्यूं बांधा है खुद को सीमाओं में उड़ने को जब नभ मंडल है सारा क्यूं रोका है नैया जीवन तू अपना निकल पड़ा तूफां से जब टकराने क्यूं बुझाता है लौ जीवन दीप का जब जली है चीर कर अंधियारा … Continue reading शेखर की कविताएं | Shekhar Hindi Poetry