शीशा-ए-दिल पे जमी है धूल शायद | Ghazal on love
शीशा-ए-दिल पे जमी है धूल शायद ( Shisha-e-Dil Pe Jami Hai Dhool Shayad ) शीशा-ए-दिल पे जमी है धूल शायद। देखने में हो रही है भूल शायद।। आरजू होती नहीं सब दिल की पूरी। हर दुआ होती नहीं मक़बूल शायद।। एक साया-सा नज़र आया है हम को। दूर अब तो है नही … Continue reading शीशा-ए-दिल पे जमी है धूल शायद | Ghazal on love
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