खुशबू अब आती नहीं खिड़कियों मकानों में | Sudarshan poetry
खुशबू अब आती नहीं खिड़कियों मकानों में ( Khushaboo ab aati nahin khidkiyon makano mein ) रहा नहीं अब प्रेम पुराना आज के इंसानों में खुशबू अब आती नहीं खिड़कियों मकानों में आलीशान बंगलों से प्यारी झोपड़ी में प्यार था खुली हवा नीम के नीचे रिश्तो भरा अंबार था गांव की … Continue reading खुशबू अब आती नहीं खिड़कियों मकानों में | Sudarshan poetry
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