बंजारा के दस कविताएं

1 प्रवाह ——- सोचता हूं कि दुनिया की सारी बारूद मिट्टी बन जाये और मैं मिट्टी के गमलों में बीज रोप दूं विष उगलती मशीनगनों को प्रेम की विरासत सौप दूं . पर जमीन का कोई टुकड़ा अब सुरक्षित नहीं लगता . कि मैं सूनी सरहद पे निहत्था खड़ा अपने चश्मे से, धूल -जमी मिट्टी … Continue reading बंजारा के दस कविताएं