तेरी सुंगध को | Teri Sugandh ko

तेरी सुंगध को ( Teri sugandh ko )   तेरी सुगंध को लालायित ,हर सुमन यहाँ अकुलाता है। अधरों पर मेरे नाम अगर ,तेरा जब-जब आ जाता है जब खिलते हैं सुधि के शतदल,जब उड़ता दृग-वन में आँचल । हर निशा अमावस की लगती ,हर दिवस बजी दुख की साँकल। यह प्रेम नगर का द्वार … Continue reading तेरी सुंगध को | Teri Sugandh ko