हाड़ कपावै थर थर ठण्डी | Thandi

हाड़ कपावै थर थर ठण्डी   माह दिसम्बर चहुं दिगम्बर छाया कुहरा धरती अम्बर, न आगे न पीछे सूझै काव करी कुछ मन न बूझै ठंडी कै बढ़ि गै प्रकोप बाप रे बप्पा होइ गै लोप भइल रात दिन एक समान कइसे बचै बाप रे जान ठंडी ठंडी बहय बयार बाहर निकलब भय दुस्वार हाड़ … Continue reading हाड़ कपावै थर थर ठण्डी | Thandi