हाड़ कपावै थर थर ठण्डी | Thandi
हाड़ कपावै थर थर ठण्डी
रचनाकार –रामबृक्ष बहादुरपुरी
रचनाकार –रामबृक्ष बहादुरपुरी
अपनापन ( Apnapan ) सफर करते-करते कभी थकती नहीं, रिश्ता निभाने का रस्म कभी भूलती नहीं, कभी यहाँ कभी वहाँ आनातुर, कभी मूर्खता कभी लगता चातुर्य, समझ से परे समझ है टनाटन, हर हालत में निभाते अपनापन, किसी को नहीं मोहलत रिश्तों के लिए, कोई जान दे दिया फरिश्तों के लिए, कोई खुशी से मिला,कोई…
अमन का दरख्त! ( Aman ka darakht ) काँटा बोनेवाला आदमी, इंसान तो नहीं, पर डरो नहीं उससे, वो भगवान तो नहीं। एक आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी, मतकर उसपे ऐतबार,नुकसान तो नहीं। डरते हैं हम जमीं वाले ऐ! खुदा, हम कोई फरिश्ता, कोई आसमान तो नहीं। बारूद से पाटी जा रही…
मोची ( Mochi ) पैरों से चलने में मजबूर, फिर भी प्रकृति में, मुस्कान भरी छाता बिखेरता , वह तल्लीन था अपने कार्य में, लगता था ऐसे कि वह , प्रभु के गांठ रहा हो जूते, उसका कार्य करने का ढंग, बड़ा ही प्रीत पूर्ण था, वह नहीं देखता कि , कौन छोटा कौन…
नर से नारायण ( Nar se narayan ) कहां गया, मेरा वह बचपन सारे खेल खिलौने, समय आज का लगता जैसे कितने क्रूर धिनौने। साथ बैठना उठना मुस्किल मुस्किल मिलना जुलना, सबमें तृष्णा द्वेष भरा है किससे किसकी तुलना। बात बात पर झगड़े होते मरते कटते रहते कभी नही कोई कुछ करते जो कुछ…
गोरैया ( Goraya ) चहचहाती गोरैया फुदकती सबके मन को हर्षाती रंग बिरंगी डाल डाल पे जब पंख पसारे उड़ जाती नील गगन में उड़ाने भर छत पर आकर बैठती सुंदर सी मनभावन लगती मीठी-मीठी चहकती रौनक आ जाती घर में सब गौरैया को डाले दाना फूरर फूरर उड़ना फिर आकर घर…
गुरु नमन ( Guru Naman ) गुरु क्या मिले जिंदगी मिल गई है। सारे जहां की खुशी मिल गई है।। अनमोल मोती भरा सिंधु सारा। दमकता सूरज गुरु भाग्य सितारा।। मिले वरदहस्त किस्मत खुल गई है। गुरु क्या मिले जिंदगी मिल गई है।। अंगुली पकड़कर रास्ता दिखलाया। दुनिया का अनुभव हमें बतलाया।। जलाया ज्ञान…