याद न आये, बीते दिनों की बैठी हूँ नील अम्बर के तलेअपनी स्मृतियों की चादर को ओढेजैसे हरी-भरी वादियों के नीचेएक मनमोहक घटा छा जाती हैमन में एक लहर-सी उठ जाती है।जैसे कोई नर्म घास के बिछौनों परकोई मन्द पवन गुजर जाती हैदेखकर प्रकृति नटी के इस रूप मेंबचपन में की गई शरारतेंफिर से आंखों … Continue reading याद न आये, बीते दिनों की
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