योगाचार्य धर्मचंद्र जी की कविताएँ | Yogacharya Dharmachandra Poetry

कैसी भक्ति? घर में मां-बाप की , एक न सुनी बात, भोजन पानी को तड़पाए, तू रोज करता रहा अपमान। जिस मां पिता आज्ञा हेतु, चौदह बरस घूमे रघुराई, वो मां-बाप रोटी को तरसे, यें कैसी भक्ति है रे भाई। रामराज स्थापना हेतु, स्वयं राममय बनना होगा , राम जी के गुणो को, जीवन में … Continue reading योगाचार्य धर्मचंद्र जी की कविताएँ | Yogacharya Dharmachandra Poetry