कैसी भक्ति?
घर में मां-बाप की ,
एक न सुनी बात,
भोजन पानी को तड़पाए,
तू रोज करता रहा अपमान।
जिस मां पिता आज्ञा हेतु,
चौदह बरस घूमे रघुराई,
वो मां-बाप रोटी को तरसे,
यें कैसी भक्ति है रे भाई।
रामराज स्थापना हेतु,
स्वयं राममय बनना होगा ,
राम जी के गुणो को,
जीवन में अपनाना होगा।।
भाई भाई इंच इंच के लिए,
खून के प्यासें बन बैठे,
यह कैसा भातृप्रेम है जो,
अपनों से दुश्मनी कर बैठे।।
संकल्प
संकल्प है तो,
विकल्प कैसा?
संकल्पवान के लिए ,
पहाड़ों ने रास्ता छोड़ा है ।
दशरथ मांझी की ,
संकल्प शक्ति के सामने,
विशाल पहाड़ को भी,
रास्ता देने को मजबूर हुआ।
गूंगी बहरी अंधी,
हेलन केलर संकल्प से ,
अंधों के जीवन में,
रोशनी को जलाया है।
बहरा विथोवन बन गया,
संगीत का सम्राट ।
अंधा मिल्टन भी,
अनुपम कवि कहलाया।
संकल्प दृढ़ हो तो,
शारीरिक अक्षमता को भी,
मात देकर ,
विद्वान बना जा सकता है ।
कठिन से कठिन,
परिस्थितियों को भी,
परास्त होना पड़ता है।
प्रेम
संसार की ज्योति है ।
ईश्वर के अनुभूति,
प्रेमी ही कर सकता है।
प्रेम और ईश्वर,
एक ही है ।
जहां जहां प्रेम है,
वहां वहां ईश्वर है ।
ईश्वर के सच्ची अभिव्यक्ति,
प्रेम ही है।
प्रेम भाव का विकास करके, ईश्वर की अनुभूति,
मनुष्य सहज में कर सकता है। प्रेम ही योग है,
प्रेम भी जोड़ता है,
योग भी जोड़ता है,
दोनों जोड़ते हैं ,
प्रभु से मिलान करवाते हैं।
योग मार्ग से जायें ,
या फिर प्रेम मार्ग से,
अंत में मिलेगा वही,
मार्ग अलग-अलग है ,
लेकिन प्राप्ति एक ही है,
ईश्वरत्व की।
मां की यादें
मां ही चंपा चमेली थी ,
मां ही तुलसी केसर थी ,
मां के ही पूजा पाठ से ,
महकता घर आंगन था ।
मां ही काशी मथुरा थी,
मां ही भोले भंडारी थी,
मां ही कृष्ण कन्हैया थी,
मां ही मंदिर की मूरत थी।
मां ही घर की खुशियाली थी,
मां थी तो घर मंदिर था,
वो मां ही थी जो हमको,
हर गलती पर डाटा करतीं थीं।
हम भाई बहन की लड़ाई,
प्यार से सुलझाया करतीं थीं।
घर में सबसे छोटा था मैं,
इसलिए कुछ ज्यादा दुलार वो करतीं थीं।
तेरे संग बिताए गए पल,
मेरे लिए हीरे मोती हैं।
तेरी यादें जब आती हैं तो,
अक्सर आंखें छलक जाती हैं।
पगली और माडल
गांव की गलियों में,
बेतरतीब कपड़े पहने,
वह पगली टहल रही है।
गवई बच्चे ठेले फेंकते तो,
हां -हां , ही -ही करती पगली, उन्हें दौड़ा लेती ।
एक मॉडल आज,
निर्वस्त्र होने की,
सरकार से इजाजत मांगतीं, सार्वजनिक नंगी होने का।
इस खबर को सुनकर ,
उसके चहेतों की संख्या बढ़ गई, जिससे रातों-रात वह ,
मशहूर हो गई ।
पगली का नंगापन,
पागलपन कहलाया,
तो मॉडल का नंगापन ,
क्या कहलायेगा?
इस प्रश्न का उत्तर,
कौन देगा? या यह प्रश्न ही अनुत्रित ही रह जाएगा!
एक मासूम सी लड़की
एक मासूम सी लड़की,
जो बोल नहीं पाती ,
इशारों ही इशारों से ,
सब कुछ समझती ।
एक दिन मैंने,
उसके भाई को मारकर,
घर भाग जाने को कहां ,
भाई को जाते देखा तो ,
जोर-जोर से लगी रोने ।
भाई को जब रोका ,
तो वह चुप हो गई ,
फिर लगीं मुस्कुराने ।
परमात्मा की अद्भुत लीला,
वही जाने,
किन कर्मों की सजा,
उसे भुगतना पड़ रहा ,
उसको देखकर ,
सोचने लगता ,
प्रभु उसे इतनी सुंदर काया दी
क्यों नहीं आवाज भी दे दी,
तू इतना निष्ठुर क्यों बन गया।
नहीं तेरी रचना में,
मैं क्यों दखल दूं ,
मैं तो इसी जन्म को जानता,
तू तो जन्मो जन्मों के ,
कर्मों का ज्ञाता है ,
और वैसे ही करता है,
जैसा जिसका कर्म होता।
पूजा पाठ
वे बहुत बड़े भक्त हैं ,
रखते हैं नवरात्रि व्रत ,
और करते हैं पूजन ,
कुंवारी कन्याओं की ।
लेकिन पुत्र प्रेमी भी है ,
पुत्र प्रेम में वे ,
पुत्रियों को गर्भ में ही ,
मरवा डालते हैं ,
उन्हें नहीं चाहिए लड़कियां ,
किस काम की है यह लड़कियां,
जिंदगी भर कमा कमा कर,
इन्हें खिलाओ पहनाओं ,
शादी में भी नेक दहेज दो,
इससे तो अच्छा लड़का होता है,
जो सुबह शाम चाहे,
मारता हो चार लात,
फिर भी उसे भी वें प्रसाद समझकर,
खा पी जाते हैं ,
कभी डकार नहीं लेते,
वाह पुजारी जी,
तेरी पूजा महान है ।
जब तक तुम यह ,
लड़का लड़की में,
भेदभाव रखते रहोगे,
सुखी नहीं रह पाओगे।
कुत्ता और मनुष्य
अपने भाग्य भाग्य की बात,
कुत्ते रहते महलों में,
खाते रस मलाई,
वही मानव होकर भी,
किसी किसी को मिलता नहीं,
खाने पीने को जूठन भी।
कुत्ते के भाग्य सराहें या,
मनुष्य के कर्म को,
कुत्ता और मनुष्य में ,
है कौन श्रेष्ठ,
बन गई है एक अबूझ पहेली।
संतजन और सद्ग्रंथ,
मानव की महानता बताते,
परंतु आज कल के कुत्ते को देख,
लगता है कि,
बदलनी होगी परिभाषा।
लिखना होगा,
बढ़े भाग्य से हमें मिला,
कुत्ते का जन्म।
पगली और माडल
( Pagli aur model )
गांव की गलियों में,
बेतरतीब कपड़े पहने,
वह पगली टहल रही है।
गवई बच्चे ठेले फेंकते तो,
हां -हां , ही -ही करती पगली, उन्हें दौड़ा लेती ।
एक मॉडल आज,
निर्वस्त्र होने की,
सरकार से इजाजत मांगतीं, सार्वजनिक नंगी होने का।
इस खबर को सुनकर ,
उसके चहेतों की संख्या बढ़ गई, जिससे रातों-रात वह ,
मशहूर हो गई ।
पगली का नंगापन,
पागलपन कहलाया,
तो मॉडल का नंगापन ,
क्या कहलायेगा?
इस प्रश्न का उत्तर,
कौन देगा? या यह प्रश्न ही अनुत्रित ही रह जाएगा!
विधवा
अभी-अभी तो उसके,
सिंदूर के रंग भी नहीं छूटे थे ,
घर की खुसर फुसर को लेकर, वह कुछ चौकन्नी हो गई।
अरे क्या हुआ? क्या हुआ? इतना बड़ा हादसा कैसे हुआ? उनको तो कुछ नहीं हुआ?
अरे क्या वह मारे गए?
क्या यह सच है रानी मां!
बेटा भाग्य को कौन टाल सकता था,
लगता था इतने दिनों का ही मिलना था,
संतोष करो मेरी लाडो ,
सब ठीक हो जाएगा।
वह सोचती–
अब यह काल कोठरी ही,
उसका जीवन है।
जन्म-जन्म भर के लिए,
अब घुट घुट कर जीना होगा।
कभी मन में विचार कौंधता, पुरुषवादी समाज की देन,
सदा से यही है कि —
यदि पत्नी मर जाए तो ,
तुरंत लार टपकने लगती है।
एक तरफ अर्थी जाती ,
दूसरी तरफ नई नवेली बहू आती।
क्यों स्त्री को ?
नहीं दिए गए यह अधिकार
युग युगांतर से लेकर, आज भी स्त्री पूछ रही है यह सवाल!
कुंजड़िन
मैं बाज़ार से,
लौट रहा था ,
देखा,
कुछ कुंजड़िन,
बेच रही थी लोहा के बर्तन,
मैं रूक गया,
खड़े खड़े ही मोल भाव करने लगा,
उसने कहा कि,
थोड़ा बैठोगे भी तो,
और उसने,
बैठने को मजबूर कर दिया।
वह भोजन खाएं जा रही थी,
मोल भाव भी करती जाती ,
मैंने कहा —
खा लो फिर बात करना,
मैं बैठ गया ,
वह भी खा चुकी,
उसकी प्रेमपूर्ण वाणी ,
दिल को छू गई,
और आखिर उसने ,
एक तवा खरीदने को,
मुझे मजबूर कर दिया।
योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )
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