“जैदि” की ग़ज़ले | Zaidi ki Ghazlein

कबीर ======== कबीरा तेरी लेखनी,चले ऐसे जैसे तलवार, पाखंडी भी कहता मेरे पाखंड को भी मार। ========================== जाके हिय सदियों बसे नफरत भरे विकार, चतुर,चलाक, अभिमानी माने कभी न हार। ========================== जात पात के जाल में, डाले संग-ओ-ख़ार, धर्म कर्म की डाल बेड़ियाँ, करे हरदम वार। ========================== कबीरा तेरी ऐसी जननी खूब लुटायो प्यार, जो … Continue reading “जैदि” की ग़ज़ले | Zaidi ki Ghazlein