जख्म ( Zakhm ) दुखती रग पे हाथ रखा घाव हरे हो गये कल तक जो अपने थे बैरी हमारे हो गए घाव भरते नहीं कभी जो मिले कड़वे बोल से नासूर भांति दुख देते रह रहकर मखोल से जख्म वो भर जाएंगे वक्त की मरहम पाकर आह मत लेना कभी … Continue reading जख्म | Zakhm par Kavita
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