जरा सी आंख क्या लगी | Zara si Aankh Kya Lagi

जरा सी आंख क्या लगी ( Zara si Aankh Kya Lagi )   जरा सी आंख क्या लगी शाम ढलने लगी। सिंदूरी होकर हसीन सी वह मचलने लगी। रजनी आई रूप धरकर फिर सजने लगी। नींद के आगोश में घंटियां भी बजने लगी। अंधियारी रात हुई नभ में घटाएं छाने लगी। सपनों की मलिका मस्त … Continue reading जरा सी आंख क्या लगी | Zara si Aankh Kya Lagi