ग़ज़लों का मुकम्मल संकलन : ” ज़िंदगी अनुबंध है “

संवैधानिक व वैज्ञानिक चेतना से युक्त सभ्य-समाज की संकल्पना के साकार स्वरूप की वकालत करती हुईं ग़ज़लों का मुकम्मल संकलन है:- ” ज़िंदगी अनुबंध है “   आमतौर पर ऐसा ही होता आया रहा है कि ग़ज़ल-ओ-शे’रो-शायरी की दुनिया में प्रेम, मोहब्बत, विरह, वेदना वगैरह-वगैरह को ही हम विषय का केन्द्र मानते,लिखते और पढ़ते आते … Continue reading ग़ज़लों का मुकम्मल संकलन : ” ज़िंदगी अनुबंध है “