अंधविश्वास तथ्य एवं वैज्ञानिक सत्य
जिक परिवेश में प्रचलित अंधविश्वास की परंपराएं उसके व्यवहार एवं अन्य क्रियाकलापों को प्रभावित करते हैं । इससे यह स्पष्ट होता है कि अंधविश्वासी व्यवहार के पीछे अंधश्रद्धा , अज्ञान , विवेकशीलता की कमी, भ्रम ,वहम, भय अबौद्धिक परंपराएं, वैज्ञानिक चेतना का अभाव आदि मनो सामाजिक कारक मौजूद रहते हैं।
यह भी मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि तनावपूर्ण अवस्था में प्रायः व्यक्ति का आत्मविश्वास स्तर गिर जाता है । ऐसे में अपने आत्मविश्वास के अभाव में व्यक्ति अपने तनाव नियंत्रण के लिए ऐसे किसी भ्रमजन्य गतिविधियों को अपना लेता है जिसका मूलाधार अंधविश्वास होता है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति अंधविश्वासी व्यवहार द्वारा स्वयं को पहले से ज्यादा आत्मविश्वास युक्त महसूस करने लगता है।
इस प्रकार का व्यवहार भूत प्रेत आदि ग्रस्त स्त्रियों में ज्यादा देखा गया है । वे जब मजार दरगाह आदि में जाती है या किसी ओझा सोखा तांत्रिक मौलाना आदि के द्वारा कुछ भभूत दे दिया जाता है तो वह अपने में हल्कापन महसूस करती हैं। यह हल्कापन मन में यह विचार करने से हुआ कि मुझे भूत पकड़ लिया है मैं ठीक हो जाऊंगी। यह चिंतन उसे थोड़ी मानसिक शांति देता है। लेकिन समस्या जस की तश बनी रहती है । यही नहीं बल्कि उचित समाधान न करने से और बढ़ जाती है।
अंधविश्वासी परंपराओं में देखा गया है कि पुरुषों की अपेक्षा महिलाएं इससे ज्यादा ग्रस्त हैं। उसमें से शहरों की अपेक्षा ग्रामीण महिलाएं ज्यादा अंधविश्वासी होती हैं। इस अंधविश्वास की जड़ में अशिक्षा, अज्ञानता ज्यादा कारण है । जैसे जैसे समाज में महिलाओं में शिक्षा का स्तर बढ़ रहा है अंधविश्वास थोड़ा कम हुआ है।
जिस अंधविश्वासों को पूर्वज मानते आ रहे उससे बच पाना मुश्किल है । महिलाओं में अंधविश्वास की प्रवृत्ति बच्चों को भी अंधविश्वासी बना देती है। यदि बालक विद्यालय में वैज्ञानिक तत्वों का अध्ययन करके आता है परंतु समाज में फैले अंधविश्वास उसके वैज्ञानिक तथ्यों पर कालिक पोत देते हैं ।
उसे यह पढ़ाया जाता है कि सभी जीवों की अपनी अलग जाति होती है परंतु अंधविश्वासी परंपराओं में देखा है कि उसका उल्टा ही दिखाई पड़ता है। जैसे हनुमान जी महाराज को बंदर के रूप में दिखाना, जामवंत, नल नील ,बाली सु्ग्रीव आदि को भी बंदर के रूप में दिखाना । लेकिन वह देखता है कि उनकी स्त्रियां तो मानव रूप में दिखाई देती हैं एक स्त्री से बंदर कैसे पैदा हो सकता है। घर , परिवार, समाज में तो उसे ऐसा दिखाई नहीं पड़ता कि किसी महिला को बंदर पैदा हुआ हो।
ऐसी ऊंट पटांग बातों को देखकर उसका सिर चकरा जाता है । दुर्गा का आठ हाथ दिखाई देना , गणेश जी का हाथी का सर दिखाई देना , ब्रह्मा जी के चारों तरफ सर होने जैसी बातें उसके गले नहीं उतरती । जब वह इन विषयों पर सवाल करना चाहता है तो वह देवता है कह कर उनका मुख बंद कर दिया जाता है ।
ऐसी स्थिति में उसकी सारी वैज्ञानिक तर्कशीलता समाप्त हो जाती है । वह भी धर्म और अंधविश्वास के आगे जैसा घर वाले कहते हैं वैसा ही करने को मजबूर हो जाता है।

योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )







