धनतेरस | Dhanteras
हर समय दुनिया की तमाम वस्तुओं की सारता-असारता का अहर्निश विचार करो। प्रत्येक चीज के उपयोग से पूर्व ऐसा विचार करने की आदत डालो! कोई भी चीज हाथ में लो तब इसे पूछो कि यह किसकी है? अपनी या पराई?
अच्छी या बुरी? सुखद या दुःखद? ऐसा करते-करते धर्म की जिज्ञासा जागृत होगी। किन्तु आप तो उल्टे उसके रंग में रंगजाते हो। भोजन में पांच चीजें आए कि आपको जल्दी से उनका स्वाद लेने का आदेश अंदर से आए, मुँह से लार टपकने लगे।
वहां विचार करने के लिए जरा रुकते हो? रसना के ऐसे गुलामों को संसार की असारता कोई समझाने का प्रयास करे तो समझाए कैसे? कारीगर के हथियार अच्छे, किन्तु इनका उपयोग योग्य वस्तु पर ही संभव है; जहां-तहां उनका उपयोग करे तो उनकी धार ही समाप्त हो जाए और वे बोथरे हो जाएं।
खेत साफ किए बिना हल नहीं जोता जाता; इसीलिए ज्ञानी ने सबसे पहले संसार की असारता का उपदेश दिया। संसार की असारता तो क्षणभर ठहरो तो महसूस हो न?
लेकिन, आपको यह विचार करने की गरज ही नहीं है। घर से बाहर निकलते समय कोट पहिनते हो, तब विचार करने के लिए रुको तो कोट भी बोध प्रदान करता है।
श्री हेमचन्द्रसूरिजी महाराजा कहते हैं कि इस प्रकार प्रत्येक क्रिया में विचार करें तो सभी क्रियाओं में से वैराग्य प्राप्त होता है। घर का मालिक मकान की सांकल बजते ही विचार करे कि ‘सुबह खोल सकूंगा या नहीं?’
तो वैराग्य नहीं आएगा? आएगा ही; किन्तु कौन विचार करे? अरे, कोई कहनेवाला मिले तो उल्टा उसे आँखें निकालकर डांटे कि ‘ऐसी अपशुकुनी बात क्यों करते हो?
मुझे मारना चाहते हो?’ जबकि उस समय उसे यह लगना चाहिए कि ठीक चेतावनी मिल रही है। तिजोरी के ताला लगाकर सोनेवाले उसे खोलने के लिए वापस नहीं उठे, ऐसी घटनाएं नहीं हुई हैं?
ऐसा नहीं होता? यह बात यदि विचारने में आए तो कृपणता जाए और उदारता आए, लक्ष्मी का मोह छूटे और धर्म जल्दी गले उतरे। यह सब विचार करने में ही दिवाला है, इसीलिए सारा दिवालियापन है।
श्री जिनेश्वरदेव के मंदिर तथा मूर्ति, निर्ग्रंथ गुरु और आगम का श्रवण ये वैराग्य का रेला नहीं बहा दें? किन्तु हृदय खोखला हो तो वहां क्या हो?
संसार की असारता का आभास हुए बिना धर्म की जिज्ञासा नहीं होती और जिज्ञासा हुए बिना धर्म परिणाम प्राप्त नहीं करता। नींव की शुद्धि और मजबूती के बिना महल खडा नहीं किया जा सकता, मूल की शुद्धि बिना फल नहीं मिलता और हृदय की शुद्धि बिना इसमें वस्तु प्रवेश नहीं करती। इसलिए हृदय को शुद्ध बनाओ!
संसार में आपको जो चीजें मिली हैं, वे पुण्य के योग से मिली हैं, इससे इन्कार नहीं है, किन्तु इनसे सेवा करवाने में कल्याण है, इनकी सेवा करने में कल्याण नहीं है, यह बराबर विचार करो और समझो!
ये तो धनतेरस के दिन दूध से धन को खूब धोते हैं और कहते हैं कि ‘मेरे घर पर कायम रहना, दूसरी जगह मत जाना’, ऐसों को वैराग्य होगा?
धर्म के प्रसंग में उपयोग करने की बात आती है तो वहां कहते हैं कि ‘अभी धंधे में मंदी चल रही है, दो लाख का घाटा हुआ है।’ लेकिन वहां तो दो की जगह पांच लाख का होगा तो भी भरेंगे, किन्तु यहां नहीं देंगे।
खाना, पीना, सोना, उठना, बैठना, मकान में घुसना और उसमें से निकलना, इस तरह प्रत्येक क्रिया के समय इस प्रकार सोचने की आदत डालोगे तो दीपक की तरह धर्म की जिज्ञासा प्रकट होगी और इस दीपक के प्रकाश में सबकुछ देखा जा सकेगा। अंधेरे में हाथ में दीपक हो तो दिक्कत नहीं आती।
जय जिनेंद्र
संजय जैन “बीना” मुंबई