दुर्गा पूजा का अनोखा आकर्षण
दुर्गा पूजा भारत में मनाए जाने वाले सबसे बड़े त्योहारों में से एक है। यह त्योहार कुल दस दिनों तक पूरे विधि-विधान के साथ मनाया जाता है। जिसमें मुख्य रूप से दुर्गा माता की पूजा की जाती है।
जिसमें भक्तों द्वारा मां के सभी रूपों की पूजा की जाती है। भारत में दुर्गा पूजा पश्चिम बंगाल में काफी प्रसिद्ध है, लेकिन पश्चिम बंगाल से सटे बिहार राज्य में भी बिहारवासी बड़े साज-सज्जा और भक्ति भाव से पूजा करते हैं।
बिहार की राजधानी पटना से 150 किलोमीटर दूर दरभंगा जिले में भी यह त्योहार बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। दरभंगा बिहार की राजधानी के बाद दूसरा सबसे बड़ा शहर है, यहां लाल किला की तर्ज पर दरभंगा महाराज का किला जैसी ऐतिहासिक धरोहर मौजूद है।
पिछले कुछ दशकों में दरभंगा मिथिला के सबसे विकसित जिलों में से एक बनकर उभरा है। यहां एयरपोर्ट, मेट्रो सेवा और एम्स जैसी सुविधाएं मिलने जा रही हैं।
दरभंगा (हसन चौक दरभंगा ) में दुर्गा पूजा बड़े पैमाने पर मनाई जाती है। पूरे मिथिला और भारत के पड़ोसी देश नेपाल से भी लोग यहां बड़ी संख्या में पूजा और दर्शन के लिए आते हैं। यहां पूजा की शुरुआत 1986 ई. में हुई थी, उस समय मिथिला के क्षेत्र में भयंकर बाढ़ आई थी।
हसन चौक के पास एक विशाल पीपल का पेड़ था जहां एक बाबा जी रहा करते थे। उन्होंने ही पहली बार यहां पूजा शुरू की और तब से लगातार 18 वर्षों से पूजा होती आ रही है।
यहां पूजा मिथिला और बनारसी पद्धति से होती आ रही है। अन्य जगहों पर बलि भी दी जाती है लेकिन यह एकमात्र ऐसी जगह है जहां बलि नहीं दी जाती। यहां पूजा कराने वाले मुख्य पुजारी अनिल मिश्रा बताते हैं कि यहां देवी मां पूर्ण रूप से शाकाहारी हैं और उन्हें खीर और हलवा का भोग लगाया जाता है।
वह आगे बताते हैं कि मां के दर्शन के लिए 2 किलोमीटर तक भक्तों की लंबी कतार लगी रहती है। यहां की सजावट अन्य जगहों से बेहतर है और पूजा पंडाल भी भव्य है। और इसकी निगरानी ड्रोन कैमरे से होती है, और दूर-दूर से आने वाले भक्तों की सुरक्षा शांति समिति और प्रशासन के सदस्यों द्वारा की जाती है। उनके लिए पीने के पानी, शौचालय और एम्बुलेंस की विशेष व्यवस्था होती है।
दरभंगा स्थित एक छात्रा ( स्नातकोत्तर उम्र लगभग 24 ) आकांक्षा बताती हैं कि उनके प्रांगण में बेलनौटी कार्यक्रम होता है, इस स्थान की सबसे बड़ी खासियत यह है कि एक पेड़ पर दो बेल के पेड़ एक साथ पूजे जाते हैं, जो मां को नेत्र अर्पित करते हैं। पिछले पांच सालों से यहां वैष्णो देवी मंदिर, शिवपुरी, आमेर किला, ढोलकपुर शीश महल, कृष्ण तोरण द्वार, अन्य स्थानों के पहाड़ों की झलक भी दिखाई जा रही है।
इस बार 2024 की दुर्गा पूजा में सभी ज्योतिर्लिंग के दर्शन, स्वामी नारायण मंदिर की झलक यहां देखने को मिलेगी। यहां जो भी भक्त आते हैं, उनमें से कोई भी खाली हाथ नहीं लौटता।
ऐसी मान्यता है कि सच्चे मन से मां की पूजा करने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। मिथिला की परंपरा के अनुसार यहां खोइछा भरने का काम भी किया जाता है, जिससे सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। आगे लोग बताते हैं कि पिछले 25 वर्षों से यहां पंडित जी भी उत्तर प्रदेश से आकर पूजा कराते हैं।
नवरात्र के अवसर पर जगराता कार्यक्रम का भी आयोजन किया जाता है। यहां की एक खास बात यह है कि उत्तम पूजा की सफलता और शांतिपूर्ण पूजा के कारण पूजा समिति के सभी सदस्यों को 26 जनवरी को प्रशासन द्वारा सम्मानित भी किया जाता है।
17 वर्षों से समिति के मुख्य सदस्य प्रदीप, प्रभाकर मिश्रा, अनिल पांडेय, अशोक मंडल, सतीश तिवारी, मदन झा, राजू मंडल, अवधेश श्रीवास्तव इस वर्ष की पूजा में मूर्ति की ऊंचाई 7 फीट है, जो बेहद खास है।
कहते हैं कि दैवीय शक्ति के कारण यहां कलश के ऊपर दीपक हमेशा जलता रहता है, चाहे कितना भी बड़ा तूफान क्यों न आ जाए, यह दीपक बुझता नहीं है।
आकृति नाम की एक लड़की जो स्नातक की छात्रा है, कहती है कि यहां मिथिला की संस्कृति झिझिया नृत्य की झलक भी दिखाई जाती है, इस पर प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती हैं, इसके साथ ही हर वर्ष डांडिया नृत्य का भी आयोजन किया जाता है। जिसमें दूर-दूर से लड़कियां डांडिया खेलने आती हैं और बड़े उत्साह के साथ खेलती हैं। इसलिए यहां की दुर्गा पूजा अलग और खास होती है।
आशीष रंजन
पत्रकारिता छात्र मगध विश्वविधालय
बोधगया, गया (बिहार)