“हँस हरिया हंँस कि तेरे घर में तेरी बहू आई है, अब तेरा भाग्य बदल जाएगा। जितना दुख झेला है, दुबारा नहीं झेलेगा।” गांँव के ठाकुर ने हरिया को सांत्वना देते हुए कहा और उन्हें तो अंतस् में इस बात की खुशी थी कि गाँव में एक कामगारिन तो बढ़ी।

“तो आपको खुशी किस बात की?” हरिया ने बेहिचक सवाल किया।
“तेरे घर में एक और मजदूरी के पैसे जो आएंगे।” ठाकुर ने उसे उत्साह दिखाते हुए कहा।
“जहाँ दो की मजदूरी के पैसे से घर नहीं चलता था, एक के बढ़ जाने से क्या खुशी आएगी खाक।” हरिया ने तपाक से कहा।

“मर्द जात निहसते नहीं हरिया, धैर्य से काम लेते हैं।” ठाकुर ने चढ़ाया उसे।
“मर्द, अंधेरे में कटती जिंदगी को उजाले में ले जाते हैं, यह भी तो सच है।” हरिया ने कम ही शब्दों में बहुत कुछ कह दिया।

“मतलब?” ठाकुर ने आश्चर्य से पूछा।
“गांँव की मिट्टी जरूरत भर नहीं देती जितनी देनी चाहिए, बहुत सारे लड़के गुजरात और पुना जाकर कमाने और घर चलाने लगे हैं, गाँव से वे सभी वहाँ अच्छे से हैं। शिवमूरत भी वहीं जाएगा, उसने ठान लिया है।” हरिया अपने बेटे और बहू के पक्ष में है। परिवर्तन के पक्ष में।

विद्या शंकर विद्यार्थी की कविताएं

विद्या शंकर विद्यार्थी
रामगढ़, झारखण्ड

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