मैं रमेश जैन B.A. बना नही
उन दिनों अक्सर कई घरों के बाहर नेम प्लेट पर नाम के साथ उनकी डिग्री भी लिखी रहती थी.. मै बड़ी ही हसरतों के साथ उन को देखता था और मन मे एक अजीब तरह सी गुदगुदी महसूस करता था।
डिग्री वाला व्यक्ति बड़े ही अभिमान के साथ घर के बाहर निकलता था.. नेम प्लेट पर अपना नाम अपनी डिग्री देखता ओर खुश हो कर आगे बढ़ता.. मुझे यह सब बड़ा ही रोमांचक लगता था.. बड़ी तमन्ना थी कि घर के बाहर मै भी एक नेम प्लेट लगाऊंगा ओर लिखूंगा रमेश कुमार जैन B.A. मगर यह इच्छा कभी पूरी न हो सकी.. सालों बीत गए कई बार कोशिस की कि B.A. तो कर ही लू मगर शायद रब की इच्छा नही है कि मुझे यह सुख मिले।
यह जो तस्वीर आप देख रहे हो न.. यह मेरी पहली कोशिस थी कि बारहवीं के बाद मैं B.A. करू.. फॉर्म भरा मगर यह फॉर्म निरस्त हो गया.. फॉर्म निरस्त हुआ तो मुझे कोई रंज या गम जरा भी नही हुआ क्योकि पढ़ने लिखने में मेरा ज्यादा यक़ी नही था, अधिक रुचि नही थी।
उन दिनों बयार यह थी कि लड़का खा पी कर महीने के हजार भी कमाए तो बहुत है.. मेरी ओर परिवार की मानसिकता यही थी.. व्यपारी परिवार था सो सोचने का अंदाज भी कुछ इस तरह ही का था.. फॉर्म निरस्त हुआ तो सोचा चलो अच्छा हुआ.. कोंन किताबो में सर खपाये.. फिर सालों बीत गए.. एक बार फिर मुझे B.A. करने का भूत चढ़ा।
फिर मन मे ख्वाइशें उठी की घर के बाहर की पाटी पर मेरे नाम के आगे B.A. लिखा होना ही चाहिए.. फिर फॉर्म भरा.. मगर पता नही फिर क्या हुआ.. मैं भूल गया या कॉलेज वाले भूल गए.. उन्होंने याद दिलाया नही ओर मुझे याद रहा नही.. मेरा B.A. का सपना फिर रह गया।
अखबारों में अक्सर विज्ञापन देखा करता था कि दसवीं पास सीधे ग्रेजुएशन करे.. कई बार उन से भी संपर्क किया कि किसी भी तरह से डिग्री मिल तो जाए मगर वहां भी निराशा ही हाथ लगी.. वे पहले पैसे भरने हेतु कहते थे और मैं यह सब बखुबी समझता था कि वे झूठे है.. फर्जी है।
कभी किसी पर यक़ी भी होता था कि शायद ये मान्यता प्राप्त हो मगर तहकीकात करता तो ज्ञात होता कि सरकार के पास ऐसे नाम के कोई कॉलेज रजिस्टर्ड नही है.. मैं निराश हो मुठिया भींच लेता।
कोरोना काल मे कुछ काम नही था.. मन मे फिर एक हुक सी उठी की अब तो B.A. करना ही है.. दौड़ा दौड़ा कॉलेज गया.. उनकी फीस भरी.. इतनी बड़ी उम्र का विद्यार्थी देख वे हैरान भी हुए और खुश भी.. मुझे बताया गया कि फलाना फलाना तारीख ओर समय पर आना है पढ़ने के लिए।
पहले दिन कक्षा में गया तो सब विद्यार्थी मुझे ही सर समझने लगे और मेरे क्लास में प्रवेष करते ही सब चुप हो गए.. मैं बड़ा ही पेशोपेश में की अब क्या करू.. बच्चो के साथ बैठ जाऊ या कक्षा छोड़ कर भाग जाऊ.. अंततः मैं बैठ ही गया.. सब बच्चे आपस मे कानाफूसी करने लगे।
उनकी उत्सुकता को कम करने के लिए मैं स्वत ही सब से मुखातिब हो कर बोला मित्रों मैं भी आज से तुम्हारा क्लासमेट ही हु.. B.A. करने आया हु.. यह सुन सब युवा होते बच्चे व्यंग से मुस्करा पढ़े.. थोड़ी देर बाद मैडम ने प्रवेश किया.. बच्चो के साथ मुझे बैठा देख वे बोली आप के बेटे का एडमिशन हैं..?
कहा है वो..? मैं बोला जी मेरे बेटे का तो ग्रेजुएशन हो चुका है.. मैं तो स्वयं अपने लिए आया हु.. बदले में वे बोली तो कुछ नही मगर उनके मन की हलचल को मैं अच्छी तरह से महसूस कर रहा था.. उन्होंने पढ़ाना शुरू किया.. मुझे बचपन के वे दिन याद आ गए जब मां खूब ठोक पिट कर स्कूल में बैठा आती थी.. स्कूल एक जेल से कम नही लगती थी।
सालों पहले की वह कैद वह बैचेनी मैं फिर महसूस करने लगा.. मैडम क्या पढ़ा रही है मुझे कुछ भी समझ मे नही आ रहा था.. लग रहा था कि सब बच्चे मुझे ही देख रहे हैं।
अपने भावों की पुष्टि के लिए झटके से मैने पीछे मुड़कर देखा.. कोई मुझे नही देख रहा था.. सब पढ़ने में लगे थे.. पीरियड खत्म होते ही मैं वहां से भाग खड़ा हुआ.. बाहर आ कर गहरी सांस ली.. घर से जब कॉलेज के लिए निकला था तो बड़े ही जोश और उत्साह से एक फ़िल्म बनाई थी जिस मे मैं बड़ा ही बड़प्पन बता रहा था कि चलो स्कूल चले हम।
घर आ कर फ़िल्म फिर देखी.. मुझे लगा फ़िल्म मुझे चिढ़ा रही है.. मन मे संकल्प किया कि कल तो पूरे पीरियड अटैंड करूंगा.. दिन भर क्लास में ही रहूंगा.. मन को मजबूत कर दूसरे दिन फिर पहुँच गया कॉलेज।
कुछ बच्चे पहले से ही कक्षा में थे.. आज किसी सर का पीरियड था.. मैं क्लास में बैठ गया.. काफी देर बाद भी जब सर नही आये तो एक बच्चे से पूछा मैने की क्या बात है.. अभी तक सर आये नही।
वह बोला सर छुट्टी पर है.. अगला पीरियड मैडम का है.. मैने पूछा वो कल पढा रहे थे वो मैडम तो जवाब में वह बोला हा.. मुझे वहां बैठना बड़ा ही मुश्किल लग रहा था.. मन ही मन सोचने लगा कि आज तो दूसरा ही दिन है।
पूरे तीन साल निकालना है.. कैसे मैं इन बच्चो में रहूंगा जो कि मेरे अपने बच्चों की उम्र के है.. कैसे उन गुरुओं से पढूंगा जो कि मुझ से उम्र में बहुत छोटे है.. स्थितियां बड़ी ही विकट होने वाली थी.. बडी उम्र की सोच मुझ पर हावी थी.. अपने गुरुजनों ओर साथी विद्यार्थियों की उम्र का मेरी उम्र से असंतुलन था.. यह असंतुलन मेरी परेशानी की वजह था.. मैं उठ खड़ा हुआ।
कक्षा से बाहर निकला.. बाहर निकल कर फिर एक बार पीछे मुड़कर कक्षा में देखा.. सब बच्चे अपने अपने साथी मित्रों से बतियाने में लगे थे.. सभी के मित्र उन के साथ थे.. सिर्फ एक मैं ही अकेला था.. मेरा कोई मित्र न था मेरे साथ पढ़ने वाला.. मै पलट कर फिर कक्षा में गया.. जोर से बोला चलो बच्चो.. आता हूं.. फिर मिलते हैं.. सब ने सर उठा कर प्रश्नवाचक चिन्ह से मेरी तरफ देखा।
एक विद्यार्थी बोला ओके अंकल..! मैं मुस्करा कर बाहर निकला तो सर कक्षा में प्रवेश कर रहे थे.. मुझे देख बोले कहिये सर क्या बात है.. मैं हँस कर बोला कोई बात नही है सर.. मेरी मुस्कान उनकी हैरानी की वजह बनी.. मैं बाहर निकलने को उद्धत हुआ पीछे कक्षा में से किसी बच्चे की आवाज मेरे कानों में पढ़ी।
देखना ये अंकल अब फिर कभी नही आएंगे पढ़ने.. उसकी बात सुन सब बच्चे हँस पड़े.. मुझे भी हँसी आ गयी.. सच ही तो कह रहा था वो.. मुझे फिर कभी नही जाना था कॉलेज.. फिर मैं कभी गया भी नही कॉलेज.. अपने सपने को पूरा करने की हिम्मत नही मुझ में।
दुनिया भर के लेख कविता लिख कर आगे बढ़ने की बात करने वाला मैं स्वयं जरा भी धीरज न रख पाया.. मैं फिर कभी पढ़ने नही गया.. मेरा आस पूरी नही हुई.. घर के बाहर नेम प्लेट पर मेरे बच्चे भले ही अपनी ग्रेजुएशन की डिग्री के बारे में लिख सकते हैं मगर मैं नही.. मैं रमेश जैन B.A. नही.. ऐसी कोई पाटी फिलहाल अभी तो नही लिखी जाएंगी.. हो सकता है फिर मुझे B.A. करने का ज्वार आ जाये।
हो सकता है मैं B.A. कर भी लू.. मगर अभी तो बस यह सब समय की गर्त में है.. बरसो का एक सपना न जाने कब पूरा होंगा.. मैं रमेश जैन B.A. कब बनूँगा..? वो भी क्या मस्त दौर था जब कुछ लोग अपनी साइकिल पर भी अपना नाम लिख कर आगे लिखते थे B.A. ओर मैं मन को संबल देता था कि किराए के मकान पर भला कोंन अपना नाम डिग्री लिखता है।
अब घर खुद का है.. बड़ी वाली हिरोहोण्डा भी खुद की.. घर पर बहुत जगह है नेम प्लेट लगाने की.. हिरोहोण्डा पर भी जगह है B.A. लिखने की मगर कमबख्त ये B.A. की डिग्री नही है।
सच कह गए हैं पुराने लोग की पैसे से दुनिया मे सब चीज नही खरीदी जा सकती.. कुछ चीजों के लिए तो मेहनत ही करनी होती है.. मेहनत तो मैने भी बहुत की.. कई बार की.. मगर मामला कुछ जमा नही.. मैं रमेश जैन B.A. बना नही.. अनेक अनेक धन्यवाद.
रमेश तोरावत जैन
अकोला
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