श्याम लाल गुप्त पार्षद : झंडा ऊंचा रहे हमारा
पिछले 75 वर्षों में प्रत्येक स्वतंत्रता दिवस हो या गणतंत्र दिवस हो जिस एक गीत को सबसे ज्यादा बच्चे गाते हैं वह है- झंडा ऊंचा रहे हमारा विजई विश्व तिरंगा प्यारा । बच्चे जाने या ना जाने इस गीत को किसने लिखा है परंतु गाते अवश्य हैं ।इस महान गीत के रचयिता थे- श्यामलाल गुप्त जी।
आपका जन्म 16 सितंबर 1893 ई को कानपुर जिले के नरबल कस्बे में एक व्यवसायी परिवार में हुआ था । आपके पिता विश्वेश्वर गुप्त को क्षेत्र में प्रमुख व्यवसायी के रूप में याद किया जाता है। श्याम लाल जी बचपन से ही दिव्य प्रतिभा से संपन्न थे । प्रकृति प्रेम ने उन्हें कविता सृजन करने की क्षमता सहज रूप में प्रदान की थी।
जब वे मात्र पांचवी कक्षा में थे तब उन्होंने एक कविता लिखे थे- परोपकारी पुरुष मुहिम में, पावन पद गाते देखें ।
उनके सुंदर नाम स्वर्ण से, सदा लिखे जाते देखे।
प्राथमिक शिक्षा के पश्चात हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग से विशारद की परीक्षा उत्तीर्ण की। मात्र 15 वर्ष की अवस्था में ही वे हरि गीतिका , सवैया ,धनाक्षरी आदि छंदों में सुंदर रचना करने लग गए थे।
साहित्यिक प्रतिभा के धनी गुप्त जी ने ‘सचिव’ नाम से एक मासिक पत्र का प्रकाशन भी आरंभ कर दिया जिसके मुख्य पृष्ठ पर उनके द्वारा रचित कविता लिखी रहती थीं –
राम राज्य की शक्ति, शांति सुख मय स्वतंत्रता लाने को।
लिया सचिव ने, जन्म देश की परतंत्रता मिटाने को।
वे मुख्य रूप से झंडा गीत के लिए जाने जाते हैं। कहा जाता है तिरंगा झंडा तो बन गया था परंतु जिसे गाया जा सके उसके लेखन की जिम्मेदारी गणेश शंकर विद्यार्थी जी ने गुप्त जी को सौंपी थी । काव्य रचना ऐसी चीज तो है नहीं कि जब चाहा हो गई । श्याम लाल जी ने कुछ पंक्तियां लिखी –
राष्ट्रगान की दिव्य ज्योति राष्ट्रीय पताका नमो नमो।
रचना तो बन गई थी परंतु उन्हें लगता था की रचना ठीक नहीं बनी है। उस दिन सोते जागते करवटें बदलते बदलते रात के 2:00 बज गए। उन्हें लगा फिर जैसे रचना उमड़ रही हो । उन्होंने स्वयं कहां है _
‘गीत लिखते समय मुझे यही महसूस होता था कि भारत माता स्वयं बैठकर एक-एक शब्द लिखा रहीं हो।
इस प्रकार से वह महान गीत उनके कलम से निकलने लगा –
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा,
झंडा ऊंचा रहे हमारा।
सदा शक्ति बरसाने वाला ,
प्रेम सुधा सरसाने वाला ,
वीरों को हरषाने वाला ,
मातृभूमि का तन मन सारा ,
झंडा ऊंचा रहे हमारा।
स्वतंत्रता संग्राम में विभिन्न भूमिका निभाते हुए भी उन्हें जिस एकमात्र गीत के लिए याद किया जाता है वह यही है। भारत सरकार ने स्वतंत्रता के पश्चात 1973 ईस्वी में उन्हें पद्मश्री से अलंकृत किया था।
ऐसे महान कालजयी गीत के रचनाकार का निधन 10 अगस्त 1977 ईस्वी में 81 वर्ष की उम्र में हो गया । उनकी मृत्यु के पश्चात कानपुर और नरवल में उनके नाम से अनेकों स्मारक बनाए गए । आजादी के पश्चात देश में लुटेरों द्वारा ही देश को लूटने से छुभित होकर उन्होंने लिखा —
देख गतिविधि देश की मैं ,
मौन मन से रो रहा हूं ,
आज चिंतित हो रहा हूं ,
बोलना जिनको ना आता था,
वहीं अब बोलते हैं ,
रस नहीं अब देश के,
उत्थान में विष घोलते हैं।
गुप्त जी एक अच्छे राम कथाकार भी थे । रामायण पर उनके प्रवचन की प्रसिद्ध बहुत दूर-दूर थी । स्वयं भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद जी को उन्होंने संपूर्ण राम कथा राष्ट्रपति भवन में सुनाई थी । आज वो नहीं है परंतु झंडा ऊंचा रहे हमारा जैसे कालजयी गीतो के कारण वे युगों युगों तक याद किए जाते रहेंगे।
योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )
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