जिंदगी की दौड़ से तुम कब तक भागोगे | Kavita Zindagi ki Daud se
जिंदगी की दौड़ से तुम कब तक भागोगे जिंदगी की दौड़ से तुम कब तक भागोगे जगा रहा हूँ सोने वाले कब तक जागोगे। छिनी जा रही है तुम्हारी थाली की रोटियांँ जीने के लिए अधिकार कब तक मांगोगे। अधिकार मांगने से नहीं लड़ने से मिलेंगे फटे – चिथड़े में पेबंद कब तक तांगोगे।…