दी गर्दन नाप

दी गर्दन नाप | Di Gardan Naap

दी गर्दन नाप ( Di Gardan Naap ) चार चवन्नी क्या मिली, रहा न कुछ भी भान। मति में आकर घुस गए, लोभ मोह अभिमान।। तन मन धन करता रहा, जिस घर सदा निसार। ना जानें फिर क्यों उठी, उस आँगन दीवार।। नहीं लगाया झाड़ भी, जिसने कोई यार। किस मुँह से फिर हो गया,…