पतझड़ में होती, रिश्तों की परख
पतझड़ में होती, रिश्तों की परख मनुज जीवन अद्भुत प्रेहलिका, धूप छांव सदा परिवर्तन बिंदु । दुःख कष्ट सुख वैभव क्षणिक , आशा निराशा शाश्वत सिंधु । परिवार समाज परस्पर संबंध, स्वार्थ सीमांत निर्वहन चरख । पतझड़ में होती, रिश्तों की परख ।। आर्थिक सामाजिक अन्य समस्या, प्रायः संघर्षरत मनुज अकेला । घनिष्ठता त्वरित विलोपन,…