बेजार | Kavita Bejaar
बेजार ( Bejaar ) पढ़ लिखकर अब क्या करे, होना है बेजार। सौरभ डिग्री, नौकरी, बिकती जब बाजार।। अच्छा खासा आदमी, कागज़ पर विकलांग। धर्म कर्म ईमान का, ये कैसा है स्वांग।। हुई लापता नेकियां, चला धर्म वनवास। कहे भले को क्यों भला, मरे सभी अहसास।। गिरगिट निज अस्तित्व को, लेकर रहा उदास। रंग बदलने…