बचपन के दिन | kavita
बचपन के दिन ( Bachapan ke din ) पलकों पे अधरों को रख कर, थपकी देत सुलाय। नही रहे अब दिन बचपन के, अब मुझे नींद न आय। सपने जल गए भस्म बन गई, अब रोए ना मुस्काए, लौंटा दो कोई बचपन के दिय, अब ना पीड़ सहाय। किससे मन की बात कहे,…
बचपन के दिन ( Bachapan ke din ) पलकों पे अधरों को रख कर, थपकी देत सुलाय। नही रहे अब दिन बचपन के, अब मुझे नींद न आय। सपने जल गए भस्म बन गई, अब रोए ना मुस्काए, लौंटा दो कोई बचपन के दिय, अब ना पीड़ सहाय। किससे मन की बात कहे,…