भटकता मन | Kavita
भटकता मन ( Bhatakta man ) भटकते मन में मेरे आज भी, कुछ आस जिन्दा है। भरा है चाहतों से शेर मन पर, प्यास जिन्दा है। उसी को टूट कर चाहा, खुदी को ही भुला करके, अधुरी चाहतों का अब भी कुछ,एहसास जिन्दा है। किसी को चाहना और वो मिले, ये सच…
भटकता मन ( Bhatakta man ) भटकते मन में मेरे आज भी, कुछ आस जिन्दा है। भरा है चाहतों से शेर मन पर, प्यास जिन्दा है। उसी को टूट कर चाहा, खुदी को ही भुला करके, अधुरी चाहतों का अब भी कुछ,एहसास जिन्दा है। किसी को चाहना और वो मिले, ये सच…