Bhookh par Kavita

भूख | Bhookh par Kavita

भूख ( Bhookh )   भूख की कामना है मिले रोटियां रहे सम्मान ना या बिके बेटियां भूख की आग जलती है बुझती कहां? इसके आगे ना दिखती है जन्नत जहां।   आग में जलते देखा है बच्चे जवां भूख से जो तड़प करके देते हैं जां रोटियां हो कई दिन पुरानी तो क्या भूख…

भूख

भूख | Bhookh Par Kavita

भूख ( Bhookh )   मैं भूख हूं, मैं मिलती हूं हर गरीब में अमीर में साधू संत फकीर में फर्क बस इतना किसी की पूरी हो जाती हूं कोई मुझे पूरा करने में पूरा हो जाता है मैं आदर्शवाद के महल के पड़ोस में पड़ी यथार्थवाद की बंजर जमीन हूं में मिलती हूं मजदूरों…