आजमाने की खातिर | Ghazal Aazmane ki Khatir
आजमाने की खातिर ( Aazmane ki khatir ) वो अक्सर मुझे आज़माने की खातिर। जलता रहा खुद जलाने की खातिर।। मुहब्बत में आया तो इक बात समझी, ये आंखें हैं आंसू बहाने की खातिर।। लुटाकर के सब कुछ ये अंजाम देखा, मिला न कोई दिल लगाने की खातिर।। उजाड़े थे जिसने कई घर सुकूं…