कर्मों का खेल | Kahani Karmo ka Khel
उम्र लगभग 80 पार हो चुकी थी। कमर झुकी हुई थी फिर भी बैठे-बैठे वह बर्तन धुल रहे थी। उसके इतनी भी हिम्मत नहीं थी कि वह बर्तन उठाकर रख सके बस वो धूल दे रही थी। धुलने के बाद वह बूढ़ी अम्मा अपनी नाती को बुलाकर कहती है -“बर्तन थोड़ा घर में रख दो।…