ग़रीब स्त्री का करवाचौथ | Karva chauth poem
ग़रीब स्त्री का करवा चौथ ( Garib stree ka karva chauth ) सुबह से भूखी-प्यासी रहकर ही पहनकर फटे-पुराने चीर, करती बेसुहाता-सा हार-श्रृंगार, अनमने मन से काम पर चली जाती, दिन भर दौड़-धूप करती फिर दोपहर बाद ही घर चली आती। घर आकर बच्चों और सास-ससुर को खाना खिलाती, पुनः सज-संवरकर शाम…