भाव जगाने निकला हूँ | Kavita bhav jagane nikla hoon
भाव जगाने निकला हूँ ( Bhav jagane nikla hoon ) बुझे हुए मन के भावों को, पुनः जलाने निकला हूँ। सुप्त हो चुके हिन्दू मन में, भाव जगाने निकला हूँ। अपनी काशी अपनी मथुरा,अपनी जो साकेत यहाँ। बुझी हुई चिंगारी से फिर, अग्नि जलाने निकला हूँ। जगा सकूँ कुछ हिन्दू मन को,तो मुझको भी…