इतिश्री | Kavita itishree
इतिश्री ( Itishree ) धीरे धीरे खत्म हो रहा, प्यार का मीठा झरना। उष्ण हो रही मरूभूमि सा दिल का मेरा कोना। प्रीत के पतवारो ने छोडा,प्रेम मिलन का रोना। अब ना दिल में हलचल करता,मिलना और बिछडना। पत्थर सी आँखे बन बैठी, प्रीत ने खाया धोखा। याद तो आती है उसकी…