जिधर देखो उधर | Kavita Jidhar Dekho Udhar
जिधर देखो उधर ( Jidhar dekho udhar ) जिधर देखो उधर मच रहा कोहराम यहां भारी है। चंद चांदी के सिक्कों में बिक रही दुनिया सारी है। बिछ रही बिसात शतरंजी मोहरे मुखौटा बदल रहे। चालें आड़ी तिरछी बदले बाजीगर बाजी चल रहे। कुर्सी के पीछे हुए सारे राजनीति के गलियारों में। वादों की…